Friday, April 11, 2008

Kuch hum bhi hain, kuch tum bhi lekin



शंकित हृदय, कुछ क्लेश सा है मन

कुछ प्रेम भी है, कुछ आत्मीय सा बंधन

कुछ अपरिचित अहसास, कुछ अनभिज्ञ स्वप्न

कुछ हम भी हैं, कुछ तुम भी इनमें......


किसी बहती दरिया के प्रवाह मैं

बह जाने , खो जाने की चाह

कुछ रौंदे हुए पत्तों से जीवन के

फिर जीवित होने का आभास

इन ख्यालों के आने की वजह

कुछ हम भी हैं , कुछ तुम भी लेकिन


कभी हसरत भरी निगाहें ..

कभी सहमी , दर्री साँसे ....

कभी मौन रहकर भी होती हैं बातें ...

और कभी हर शब्द को तरसती हैं आँखें

इस बावली सी हरकतों के गुनाहगार,

कुछ हम भी हैं , कुछ तुम भी लेकिन

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